ॐ क्ली बुद्धिम देहि यौं देहि कविल्व देहि देहि में
मद्तावं हर में देवी त्राहि माँ भार्नागातम कलीम ॐ
The purpose of this site is to give knowledge and power of mantras to masses. Another aim is to promote spiritual and physical health. As we know we will remain happy if we have sound health, sound mind and sound wealth, so, this site provides mantras for all these things.
Sunday, December 26, 2010
Shatru Naash Mantra
भास् इत्था महाम अस्यामित्र खादों अभ्दुथः I
न यस्य हम्याते सर्वा न जियते कदाचन II
न यस्य हम्याते सर्वा न जियते कदाचन II
Mantra for God Sun, Surya Mantra
ॐ हं हीम हुम आदित्य सविता सूर्य खागा पूषा गर्भास्तामान नमः प्रचुर धनं ददाति पुनः पुनः स्वगः
Wednesday, November 3, 2010
Kamdev Mantra
कामदेव मंत्र
kaamdev means 'divine love' or 'god of love'. Kamdev is known by several names like Ragavrinta, Ananga, Kandarpa, Manmatha, Manasija, Madana, Ratikanta, Pushpavan, Pushpadhanva or simply Kama.
कलिंग कम्देवाया नामा
Mantra for Vashikaran
कामदेव वशीकरण मंत्र
ॐ नमः काम देवाय सहकल सहद्रश सहमसह लिए
वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं कुरु कुरु दक्ष दक्षु
धर कुसुम वाणेन हन हन स्वाहा ll
Mantra to Attract Opposite Sex
विपरीत लिंग को आकर्षित करने के लिए मंत्र
ॐ काम देवाय विद्महे पुस्प्बन्नाय
धीमहि तन्नो अनंग प्रकोदायत
Mantra for Sex
सम्भोग के लिए मंत्र
ॐ नमो भगवते कम्देवाये ,
यस्य यस्य दृश्यों भवामि ,
यश्च यश्च मुम मुखं पश्यतइ तम तम मोह्यातु स्वः
Mantra for Studies
अध्यन - शिक्षा के लिए मंत्र
सरस्वती नमस्तुध यम
वर्दे कामरूपिणी
विद्याराम्ब्हम करिष्यामि
सिद्धिर भवतु में सदा
Mantra for Getting Children
बच्चे प्राप्त करने के लिए मंत्र
देवकी सूत गोविंदा वासुदेव जगत्पते
देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः
Mantra for Purification of Thoughts
विचार शुद्धि के लिए मंत्र
टेक जुगा पड़ा कमला मानवों
जासु कृपा निरमला मति पावून
Mantra for Acquiring Knowledge
ज्ञान वृदि के लिया मंत्र
छिति जला पावका गगन समिरः
पंचा रचित यः अधम शरितः
Mantra for Winning Court Cases
कोर्ट केस जीतने के लिया मंत्र
पवन तनया बाला पवन सामना
बुद्धि विवेक बिग्याना निधाना
Mantra for Removing any Disease
किसी भी तरह के रोग निवारण के लिए मंत्र
१ ॐ हरिम हंसः
२ ॐ श्रीम हरिम कलीम एम इन्द्रक्ष्याई नमः
३ ॐ सम, सम सिम, सुम सुम सेम सिम सम सहा वाम वाम विम विम विम
वुम वुम वेम वैम वोइम वौम वाम वन सहा अमृता वरेच स्वाहा
Mantra for Curing Fever
ज्वार - बुखार के लिए मंत्र
१ ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः क्रोधेस्वराया नमः
ज्योति पतंगाया नमो नमः सिद्धि रूद्र अजपायती स्वाहा
२ ॐ विन्दय वनाना हम फट स्वाहा
३ ॐ नमो भगवते छंदी छंदी अमुकस्य ज्वरस्य
सहारा प्रज्ज्विलिता परशुपनिये परशाया फट
४ ॐ नमो महा उच्छिष्ट योगिनी प्रकीर्ण द्रन्श्ता खादति
ठरवती नश्यति भक्षयति ॐ थाह थाह थाह
Mantras for Marriage
शादी विवाह के लिए मंत्र
१ ताबा जनका पी बशिश यासु भय सजा सवारी कई
मांडवी श्रुता कीरति उर्मिला कुवारी ली हंकारी कई
२ कात्यायनी महामाये महयोगिन्दधिश्वरी
नन्दगोपसुतम देवी पतिम में कुरुते नमः
Mantras for Wealth
धन के लिये मंत्र
१ ॐ लक्षी वाम श्री कमालाध्रम स्वाहा
२ जिमी सरिता सागर महू जाही
जद्यपि ताहि कामना नाही
३ बिश्व भरना पोषण करा जोई
तकर नामा भारत असा कोई
४ ॐ श्रीम ह्रीम श्रीम कमले कमलालये मह्या प्रसीदा
प्रसीदा प्रसीदा स्वाहा
Deep Mantra
दीप प्रज्वलन मंत्र
शुभम करोति कल्याणम आरोग्यं धन सम्प्रद्य I
शत्रु वृद्धि विनाशाय दीप ज्योति नमोस्तुते II
Kuber Mantra
कुबेर मंत्र
धनदाय नमस्तुभ्यम निधिपद्माधिवाय च I
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन धन्यदिसेम्पध II
Indra Mantra
इन्द्र मंत्र
ऐरावत समांरुदोबज्रहस्तो महाबलाह I
शत्याग्धिपो देवास्तस्मा इन्द्राय ते नमह II
Mantra for DHANTERAS
Put Deepak infront of your house gate. Chat the mantra while facing towards southern direction. This day is also celebrated as Lord Dhanvantri Birthday.
यम्दीप्दान मंत्र
म्रत्युनाम पासहस्तेन कालेन भार्यापास त्रयो I
दास्याम दीप्दानाम सुर्यज त्रिछत्तामिवि II
Tuesday, April 6, 2010
MAHA MRITUNJAYA MANTRA , महा मृतुन्जय मंत्र
महा मृतुन्जय मंत्र
Maha mritunjaya mantra is chanted for strength.
When chanted with full sincerity, faith and devotion, to a worshipper from any faith, this removes dangers of accidents, incurable diseases and calamities, bestows long Life and immortality. It has a great curative effect. Diseases pronounced incurable by doctors are cured by this Mantra. It bestows health, wealth, peace, prosperity, satisfaction and long life. It is a Moksha-Mantra too.
Aum Tryambakam Yajamahe Sugandhim Pushti-vardhanam |
Urva - rukamiva Bandhanan Mrtyor - muksheeya Maamritat ||
Urva - rukamiva Bandhanan Mrtyor - muksheeya Maamritat ||
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुजन्धिम पुष्टि वर्धनम I
उर्वा रुकमिवा बन्धनं म्र्य्टर मुक्षीय मामृतात II
Saturday, March 27, 2010
Chaitra Navratra - Devi Mantras
Hindus worship to the female aspect of divinity as Shakti -- in the form of the mother Goddess Devi. Shakti in Hindu belief is the all encompassing divine mother who is the supreme feminine being and it is from her that other forms of goddesses take birth.
Navratri is a nine days long festival of India. It comes twice in a year. Once in Chaitra and again in Ashwina. Chaitra Navratri, also known as Chait Navratras, as the name indicates is observed during the Chaitra month (March – April) in a traditional Hindu calendar followed inNorth India . Hindu people will worship nine forms or incarnations of Goddess (Devi) Durga. Navratri is dedicated to worship of goddess Durga and is the most awaited festival for all age groups. The festival is dedicated to Goddess Shakti and her other three forms– Goddess Durga, Lakshmi and Saraswati. It begins on the first day of the Chaitra month and ends with Ram Navami.
Nine Devis and their worship mantras are:
1. शैलपुत्री :- The first day is dedicated to the Goddess Durga is called Shailputri, the daughter of theHimalayas . She is a form of
Shakti, the companion of Lord Shiva .
देवी के प्रथम रूप को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। नवरात्र पूजा के पहले दिन मां दुर्गा के इस रूप का ध्यान कर पूजा—अर्चना की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शैलपुत्री हिमालय की प्रथम कन्या हैं। पूर्वजन्म में वो महाराजा दक्ष की पुत्री सती थी और उनका विवाह भगवान शिव के साथ सम्पन्न हुआ था लेकिन दक्ष शिव को पसंद नहीं करते थे। एक बार दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया और शिव को अपमानित करने के उद्देश्य से उन्हें इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। क्षुब्ध हो सती पिता के घर जा पहुंची। पिता द्वारा अपने पति का अपमान उन्हें सहन नहीं हुआ और यज्ञ की प्रज्जवलित अगिA में कूद कर उन्होंने अपनी जान दे दी। तत्पpात् दूसरे जन्म में उन्होंने हिमालय की पुत्री पार्वती बनने का सौभाग्य पाया और पुन: शिव को पत्नी बनीं। उपनिषदों में देवी को शक्ति के रूप माना गया है। ब्रह्मा, विष्णु और स्वयं शिव की शक्ति का स्रोत देवी के केंद्र में अंतर्निहित है
सर्वबाधा जिनिमुर्तको धन धान्य स्वतानं विथः I
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशः II
२. ब्रह्मचारिणी :- The second day is dedicated to the Goddess Durga is known as 'Brahmacharini'. The name is derivative of the word
'Brahma', which means 'Tapa' or penace. She is also a form of Mata Shakti.
शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा द्वितीय रूप में ब्रह्मचारिणी केनाम से विख्यात हैं। यहां पर ब्रह्मा का तात्पर्य तप से है। माता का यह रूप काफी आकर्षक प्रतीत होता है। इस रूप में माता के दाहिने हाथ में माला है जबकि बाएं हाथ में माता ने कमंडल धारण कर रखा है। माता ब्रह्मचारिणी के संबंध में एक पौराणिक कथा काफी लोकप्रिय है। इसके अनुसार एक बार हिमालय पुत्री माता पार्वती अपनी सखियों के साथ किसी खेल में व्यस्त थीं तभी नारद मुनि वहां पधारे। पार्वती की हस्तरेखाओं को देखकर नारद मुनि ने भविष्यवाणी की कि आपकी शादी पूर्वजन्म के पति शिव के साथ होगी लेकिन इसके लिए आपको तप करना होगा। नारद मुनि की बातें सुनकर पार्वती ने अपनी मां को स्पष्ट कह दिया कि वो शिव के अलावा किसी और से शादी नहीं करेंगी। यदि शिव ने उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया तो वह जीवन भर कुंआरी रहेंगी। ऎसा कहकर वो तप करने के लिए वन की ओर चल दीं। तभी से पार्वती का नाम ब्र±मचारिणी पड़ा।
श्रृष्टि सिथिति विनाशानाम शक्ति भूते सनातानी I
गुनाश्राये गुनामाये नारायणी नमोस्तुते II
३. चंद्रघंटा :- The third day is dedicated to the goddess chandraghanta, the symbolic representation of beauty and bravery.
नवरात्र के तीसरे दिन माता शक्ति के चंद्रघंटा रूप का ध्यान किया जाता है। इस रूप में देवी के ललाट पर आधे चंद्रमा की आकृति अंकित है। सुनहरे रंग का उनका व्यक्तित्व काफी शांत और आकर्षक छवि के प्रतीक के रूप में नजर आता है। देवी को तीन आंखें और दस भुजाओं के साथ दिखाया गया है। माता की दसो भुजाओं में दस अलग—अलग अस्त्र शोभायमान हैं। माता चंद्रघंटा शेर पर सवार हैं और इन्हें युद्ध स्थल की ओर गमन करते दर्शाया गया है। अन्य आभूषणों के साथ माता ने गले में घंटे को जेवरात के रूप में धारण कर रखा है, जिसके कारण इन्हें चंद्रघंटा के नाम से संबोघित किया जाता है। ऎसी मान्यता है कि इस घंटे की ध्वनि मात्र से दानव, असुरी शक्तियों और बुरी प्रवृतियों का नाश हो जाता है।
शुलेंन पाही नौ देवी पाही खड्गेन च अम्बिके I
घंटा स्वनेन न पाहि चापजययानी स्वनेन च II
४. कुष्मांडा :- The fourth day is dedicated to the goddess Kushmandas, the creator of the entire Universe.
देवी दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस शक्ति से अंडे की उत्पत्ति हुई जिसे बह्मांड के प्रतीक के रूप में माना जाता है। कुष्माण्डा माता का निवास संपूर्ण सौर्यमंडल में है। माता के ओज से ही दसों दिशाएं सूर्य की तरह प्रकाशमान हैं। आठ भुजाओं वाली मां ने सात प्रकार के अस्त्रों को धारण कर रखा है। उनकी दाहिनी भुजा में माला सुशोभित है।
प्रन्तानाम प्रसीत त्वम् देवी विशार्थी हारिणी I
त्रलोक्य वासिना मिज्मै लोकानाम वर्दाभव II
५. स्कंध्माता :- The fifth day is dedicated to the Goddess Skand Mata, the mother of the chief warrior of the Gods army the Skanda.
नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता का पूजन-ध्यान किया जाता है। यह माता पार्वती का ही दूसरा नाम है। तप के पुण्य प्रताप से शिव की वामंागी बनने के पpात मां ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे "स्कंद" के नाम से जाना जाता है। स्कंद को देवताओं की सेना का प्रमुख कहा गया। स्कंद की माता होने के कारण मां को स्कंदमाता का नाम दिया गया। तीन नेत्रों वाली स्कंदमाता ने श्वेत वस्त्र धारण कर रखें है और वो कमल पर आसीन हैं।
देवी त्रपन्ना त्रिहरे प्रसीद प्रसीद त प्रसीद मात्र जगतोड़ I
थिल्सिम प्रसीद विश्वश्री पाही विश्वम त्वामिश्री देवी II
६. कात्यानी :- The sixth day is dedicated to the goddess Katyayani with three eyes and four hands.
देवी का छठा स्वरूप कात्यायनी माता का है। इनकी उत्पत्ति कात्यायन ऋषि से मानी गई है। कात्यायन ऋषि ने परअंबा को पुत्री के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। परिणामस्वरूप वो एक पुत्री के पिता बने जो कात्यायनी नाम से विख्यात हुई। तीन नेत्रों और आठ भुजाओं वाली माता कात्यायनी की सवारी शेर है। उनके हाथों में विभिन्न प्रकार के अस्त्र शोभायमान हैं।
एतत्वे बदनम स्वमयम लोचन त्रये' भूषितं तातु नः सर्वः भितेश्यः I
कात्यानी नमोस्तुते II
७. कालरात्रि :- The seventh day is dedicated to the Goddess 'Kalratri', meant to make the devotees fearless.
नवरात्र के दौरान सातवें दिन माता के कालरात्रि रूप की पूजा का विधान है। कालरात्रि का अर्थ है काली रात। कालरात्रि मां के केश खुले हैं और उन्होंने चमकदार आभूषण धारण कर रखे हैं। माता के तीन नेत्र तीनों लोकों अर्थात् संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक हैं। उनके दाहिने हाथ में खड्ग है जबकि बाएं हाथ में मशाल शोभायमान है। नीचे की ओर झुकी दूसरी दाहिनी भुजा आशीर्वाद की मुद्रा में है, वहीं बायीं भुजा भयमुक्त प्रतीत होती है। मां को शुभम्कारी कहकर भी संबोघित किया जाता है। कालरात्रि मां की सवारी शव है
जयति मंगला काली भद्र काली क्रपालिनी I
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वहा सुधा नमोस्तुते II
८. महागौरी :- The eight day is dedicated to the Mata Rani or 'Maha Gauri', represents calmness and exhibits wisdom.
नवरात्र की महाष्टमी तिथि को महागौरी की पूजा की जाती है। जुही के पुष्प अथवा चांद की तरह श्वेत आभा से परिपूर्ण माता की आयु आठ वर्ष की है। उन्होंने श्वेत वस्त्र और आभूषण धारण कर रखें हैं। चार भुजाधारी मां बैल पर सवार हैं। माता की बायीं भुजा भयमुक्त मुद्रा में हैं जबकि दूसरी बायीं भुजा में उन्होंने त्रिशूल धारण कर रखा है। वहीं, दाहिनीं भुजा आर्शीवाद की मुद्रा में है। माता का यह रूप शांति का प्रतीक है और उनका मुखमंडल शांत-सौम्य आभायुक्त है। एक कथा के अनुसार शिव को पति रूप में पाने की लालसा में पार्वती द्वारा किए गए तप के दौरान पृथ्वी की धूल-मिट्टी से माता का शरीर गंदा हो गया था। तब शिव ने गंगाजल से मां के शरीर को साफ किया जिससे उनका शरीर दूध की तरह श्वेत होकर निखर उठा। इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है।
देहि सौभाग्य मा आरोग्यं देहि में पदम् सुखं I
रूपं देहि जयम देहि जयम देहि यशो देहि दिव्यो गहि II
९. सिधिदात्री :- The ninth day is dedicated to Durga also referred as
Siddhidatri. It is believed that she has all the eight siddhis and is worshipped by all the Rishis and Yogis.
नवम दुर्गा को सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है। माता का नामाकरण आठ सिद्धियों-अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, पराक्रम, स्थित्व और वसित्व के आधार पर किया गया है। माता सभी सिद्धियों की धात्री हैं और उनके स्मरण से सभी सिद्धियों को प्राप्त किया जा सकता है। देवीपुराण की मान्यता के अनुसार स्वयं भगवान शिव को भी माता शक्ति की आराधना के बाद ही इन सिद्धियों की प्राप्ति हुई थी। यही कारण है कि शिव को अर्द्धनारीश्वर के नाम से भी जाना जाता है। चार भुजाओं वाली माता शांत मुद्रा में सिंह पर सवार हैं। समस्त देवी-देवता, ऋषि-मुनि, सिद्ध पुरूष, योगी और भक्तगण माता के इस स्वरूप की ही आराधना में लीन रहते हैं।
शरणागत दिनार्थ परिप्राण प्रयाणी I
सर्व स्यतरिहारी देवी नारायणी नमोस्तुते II
Navratri is a nine days long festival of India. It comes twice in a year. Once in Chaitra and again in Ashwina. Chaitra Navratri, also known as Chait Navratras, as the name indicates is observed during the Chaitra month (March – April) in a traditional Hindu calendar followed in
Nine Devis and their worship mantras are:
1. शैलपुत्री :- The first day is dedicated to the Goddess Durga is called Shailputri, the daughter of the
Shakti, the companion of Lord Shiva .
देवी के प्रथम रूप को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। नवरात्र पूजा के पहले दिन मां दुर्गा के इस रूप का ध्यान कर पूजा—अर्चना की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शैलपुत्री हिमालय की प्रथम कन्या हैं। पूर्वजन्म में वो महाराजा दक्ष की पुत्री सती थी और उनका विवाह भगवान शिव के साथ सम्पन्न हुआ था लेकिन दक्ष शिव को पसंद नहीं करते थे। एक बार दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया और शिव को अपमानित करने के उद्देश्य से उन्हें इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। क्षुब्ध हो सती पिता के घर जा पहुंची। पिता द्वारा अपने पति का अपमान उन्हें सहन नहीं हुआ और यज्ञ की प्रज्जवलित अगिA में कूद कर उन्होंने अपनी जान दे दी। तत्पpात् दूसरे जन्म में उन्होंने हिमालय की पुत्री पार्वती बनने का सौभाग्य पाया और पुन: शिव को पत्नी बनीं। उपनिषदों में देवी को शक्ति के रूप माना गया है। ब्रह्मा, विष्णु और स्वयं शिव की शक्ति का स्रोत देवी के केंद्र में अंतर्निहित है
सर्वबाधा जिनिमुर्तको धन धान्य स्वतानं विथः I
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशः II
२. ब्रह्मचारिणी :- The second day is dedicated to the Goddess Durga is known as 'Brahmacharini'. The name is derivative of the word
'Brahma', which means 'Tapa' or penace. She is also a form of Mata Shakti.
शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा द्वितीय रूप में ब्रह्मचारिणी केनाम से विख्यात हैं। यहां पर ब्रह्मा का तात्पर्य तप से है। माता का यह रूप काफी आकर्षक प्रतीत होता है। इस रूप में माता के दाहिने हाथ में माला है जबकि बाएं हाथ में माता ने कमंडल धारण कर रखा है। माता ब्रह्मचारिणी के संबंध में एक पौराणिक कथा काफी लोकप्रिय है। इसके अनुसार एक बार हिमालय पुत्री माता पार्वती अपनी सखियों के साथ किसी खेल में व्यस्त थीं तभी नारद मुनि वहां पधारे। पार्वती की हस्तरेखाओं को देखकर नारद मुनि ने भविष्यवाणी की कि आपकी शादी पूर्वजन्म के पति शिव के साथ होगी लेकिन इसके लिए आपको तप करना होगा। नारद मुनि की बातें सुनकर पार्वती ने अपनी मां को स्पष्ट कह दिया कि वो शिव के अलावा किसी और से शादी नहीं करेंगी। यदि शिव ने उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया तो वह जीवन भर कुंआरी रहेंगी। ऎसा कहकर वो तप करने के लिए वन की ओर चल दीं। तभी से पार्वती का नाम ब्र±मचारिणी पड़ा।
श्रृष्टि सिथिति विनाशानाम शक्ति भूते सनातानी I
गुनाश्राये गुनामाये नारायणी नमोस्तुते II
३. चंद्रघंटा :- The third day is dedicated to the goddess chandraghanta, the symbolic representation of beauty and bravery.
नवरात्र के तीसरे दिन माता शक्ति के चंद्रघंटा रूप का ध्यान किया जाता है। इस रूप में देवी के ललाट पर आधे चंद्रमा की आकृति अंकित है। सुनहरे रंग का उनका व्यक्तित्व काफी शांत और आकर्षक छवि के प्रतीक के रूप में नजर आता है। देवी को तीन आंखें और दस भुजाओं के साथ दिखाया गया है। माता की दसो भुजाओं में दस अलग—अलग अस्त्र शोभायमान हैं। माता चंद्रघंटा शेर पर सवार हैं और इन्हें युद्ध स्थल की ओर गमन करते दर्शाया गया है। अन्य आभूषणों के साथ माता ने गले में घंटे को जेवरात के रूप में धारण कर रखा है, जिसके कारण इन्हें चंद्रघंटा के नाम से संबोघित किया जाता है। ऎसी मान्यता है कि इस घंटे की ध्वनि मात्र से दानव, असुरी शक्तियों और बुरी प्रवृतियों का नाश हो जाता है।
शुलेंन पाही नौ देवी पाही खड्गेन च अम्बिके I
घंटा स्वनेन न पाहि चापजययानी स्वनेन च II
४. कुष्मांडा :- The fourth day is dedicated to the goddess Kushmandas, the creator of the entire Universe.
देवी दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस शक्ति से अंडे की उत्पत्ति हुई जिसे बह्मांड के प्रतीक के रूप में माना जाता है। कुष्माण्डा माता का निवास संपूर्ण सौर्यमंडल में है। माता के ओज से ही दसों दिशाएं सूर्य की तरह प्रकाशमान हैं। आठ भुजाओं वाली मां ने सात प्रकार के अस्त्रों को धारण कर रखा है। उनकी दाहिनी भुजा में माला सुशोभित है।
प्रन्तानाम प्रसीत त्वम् देवी विशार्थी हारिणी I
त्रलोक्य वासिना मिज्मै लोकानाम वर्दाभव II
५. स्कंध्माता :- The fifth day is dedicated to the Goddess Skand Mata, the mother of the chief warrior of the Gods army the Skanda.
नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता का पूजन-ध्यान किया जाता है। यह माता पार्वती का ही दूसरा नाम है। तप के पुण्य प्रताप से शिव की वामंागी बनने के पpात मां ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे "स्कंद" के नाम से जाना जाता है। स्कंद को देवताओं की सेना का प्रमुख कहा गया। स्कंद की माता होने के कारण मां को स्कंदमाता का नाम दिया गया। तीन नेत्रों वाली स्कंदमाता ने श्वेत वस्त्र धारण कर रखें है और वो कमल पर आसीन हैं।
देवी त्रपन्ना त्रिहरे प्रसीद प्रसीद त प्रसीद मात्र जगतोड़ I
थिल्सिम प्रसीद विश्वश्री पाही विश्वम त्वामिश्री देवी II
६. कात्यानी :- The sixth day is dedicated to the goddess Katyayani with three eyes and four hands.
देवी का छठा स्वरूप कात्यायनी माता का है। इनकी उत्पत्ति कात्यायन ऋषि से मानी गई है। कात्यायन ऋषि ने परअंबा को पुत्री के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। परिणामस्वरूप वो एक पुत्री के पिता बने जो कात्यायनी नाम से विख्यात हुई। तीन नेत्रों और आठ भुजाओं वाली माता कात्यायनी की सवारी शेर है। उनके हाथों में विभिन्न प्रकार के अस्त्र शोभायमान हैं।
एतत्वे बदनम स्वमयम लोचन त्रये' भूषितं तातु नः सर्वः भितेश्यः I
कात्यानी नमोस्तुते II
७. कालरात्रि :- The seventh day is dedicated to the Goddess 'Kalratri', meant to make the devotees fearless.
नवरात्र के दौरान सातवें दिन माता के कालरात्रि रूप की पूजा का विधान है। कालरात्रि का अर्थ है काली रात। कालरात्रि मां के केश खुले हैं और उन्होंने चमकदार आभूषण धारण कर रखे हैं। माता के तीन नेत्र तीनों लोकों अर्थात् संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक हैं। उनके दाहिने हाथ में खड्ग है जबकि बाएं हाथ में मशाल शोभायमान है। नीचे की ओर झुकी दूसरी दाहिनी भुजा आशीर्वाद की मुद्रा में है, वहीं बायीं भुजा भयमुक्त प्रतीत होती है। मां को शुभम्कारी कहकर भी संबोघित किया जाता है। कालरात्रि मां की सवारी शव है
जयति मंगला काली भद्र काली क्रपालिनी I
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वहा सुधा नमोस्तुते II
८. महागौरी :- The eight day is dedicated to the Mata Rani or 'Maha Gauri', represents calmness and exhibits wisdom.
नवरात्र की महाष्टमी तिथि को महागौरी की पूजा की जाती है। जुही के पुष्प अथवा चांद की तरह श्वेत आभा से परिपूर्ण माता की आयु आठ वर्ष की है। उन्होंने श्वेत वस्त्र और आभूषण धारण कर रखें हैं। चार भुजाधारी मां बैल पर सवार हैं। माता की बायीं भुजा भयमुक्त मुद्रा में हैं जबकि दूसरी बायीं भुजा में उन्होंने त्रिशूल धारण कर रखा है। वहीं, दाहिनीं भुजा आर्शीवाद की मुद्रा में है। माता का यह रूप शांति का प्रतीक है और उनका मुखमंडल शांत-सौम्य आभायुक्त है। एक कथा के अनुसार शिव को पति रूप में पाने की लालसा में पार्वती द्वारा किए गए तप के दौरान पृथ्वी की धूल-मिट्टी से माता का शरीर गंदा हो गया था। तब शिव ने गंगाजल से मां के शरीर को साफ किया जिससे उनका शरीर दूध की तरह श्वेत होकर निखर उठा। इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है।
देहि सौभाग्य मा आरोग्यं देहि में पदम् सुखं I
रूपं देहि जयम देहि जयम देहि यशो देहि दिव्यो गहि II
९. सिधिदात्री :- The ninth day is dedicated to Durga also referred as
Siddhidatri. It is believed that she has all the eight siddhis and is worshipped by all the Rishis and Yogis.
नवम दुर्गा को सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है। माता का नामाकरण आठ सिद्धियों-अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, पराक्रम, स्थित्व और वसित्व के आधार पर किया गया है। माता सभी सिद्धियों की धात्री हैं और उनके स्मरण से सभी सिद्धियों को प्राप्त किया जा सकता है। देवीपुराण की मान्यता के अनुसार स्वयं भगवान शिव को भी माता शक्ति की आराधना के बाद ही इन सिद्धियों की प्राप्ति हुई थी। यही कारण है कि शिव को अर्द्धनारीश्वर के नाम से भी जाना जाता है। चार भुजाओं वाली माता शांत मुद्रा में सिंह पर सवार हैं। समस्त देवी-देवता, ऋषि-मुनि, सिद्ध पुरूष, योगी और भक्तगण माता के इस स्वरूप की ही आराधना में लीन रहते हैं।
शरणागत दिनार्थ परिप्राण प्रयाणी I
सर्व स्यतरिहारी देवी नारायणी नमोस्तुते II
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